डेंगू बुख़ार :
डेंगू बुख़ार एक संक्रमण है जो डेंगू वायरस के कारण होता है। डेंगू बुख़ार को “हड्डीतोड़ बुख़ार” के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इससे पीड़ित लोगों को इतना अधिक दर्द हो सकता है कि जैसे उनकी हड्डियां टूट गयी हों। डेंगू बुख़ार एक या दो ऐसे रूपों में हो सकता है जो जीवन के लिये खतरा हो सकते हैं। पहला, डेंगू रक्तस्रावी बुख़ार है, जिसके कारण रक्त वाहिकाओं, में रक्तस्राव या रिसाव होता है तथा रक्त प्लेटलेट्स का स्तर कम होता है। दूसरा डेंगू शॉक सिंड्रोम है, जिससे खतरनाक रूप से निम्न रक्तचाप होता है। डेंगू बीमारी ऐसा बुखार है जिसे महामारी के रूप में देखा जाता है। बड़ों के मुकाबले बच्चों में यह रोग जल्दी फैलता है। डेंगू जानलेवा भी हो सकता है। मादा एनाफिलीज मच्छर के काटने से डेंगू होता है। सामान्य बुखार की तुलना में डेंगू ज्यादा पीड़ादायक है।
डॆंगू का प्रथम महामारी रूपेण हमला एक साथ एशिया, अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका मे एक साथ १७८० के लगभग हुआ था, इस रोग को १७७९ मे पहचाना तथा नाम दिया गया था। १९५० के दशक मे यह दक्षिण पूर्व एशिया यह निरंतर महामारी रूप मे फैलना शुरू हुआ तथा १९७५ तक डेंगू हेमरेज ज्वर इन देशों मे बाल मृत्यु का प्रधान कारण बन गया है। १९९० के दशक तक डेंगू मलेरिया के पश्चात मच्छरों द्वारा फैलने वाला दूसरा सबसे बडा रोग बन गया जिससे साल भर मे ४ करोड़ लोग संक्रमित होते है वहीं डेंगू हैमरेज ज्वर के भी हजारों मामले सामने आते है।
लक्षण –
- डेंगू वायरस से संक्रमित लगभग 80% लोगों (प्रत्येक 10 लोगों में से 8) में कोई लक्षण नहीं होते हैं या बेहद हल्के लक्षण (जैसे कि मूलभूत बुख़ार) होते हैं। डेंगू बुख़ार के कुछलक्षणों में बुखार, सिरदर्द, त्वचा पर चेचक जैसे लाल चकत्ते तथा मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द, आंखें लाल होना, आंखों से लगातार पानी बहना, उल्टी आना, जी घबराना, भूख नहीं लगना तथा नींद नहीं आना शामिल हैं। डेंगू होने पर बुखार के साथ चिड़चिड़ापन, त्वचा रैशेज होने लगता है। जब बच्चों को डेंगू बुख़ार होता है तो उनके लक्षण आम सर्दी-ज़ुकाम या आंत्रशोथ (गैस्ट्रोएनटराइटिस) (या उदर फ्लू; उदाहरण के लिये, उल्टी तथा दस्त (डायरिया)) होते हैं। डेंगू बुख़ार के ऐसे आदर्श लक्षण कम होते हैं जो अचानक शुरु हो जाते हैं जैसे सिरदर्द (आमतौर पर आँखों के पीछे); चकत्ते तथा मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द। बुख़ार अक्सर 40 डिग्री सेल्सियस (104 डिग्री फ़ॉरेनहाइट) होता है। यह चरण आमतौर पर 2 से 7 दिन तक चलता है। इस चरण में जिन लोगों में लक्षण होते हैं उनमें से लगभग 50 से 80% लोगों को चकत्ते हो जाते हैं। पहले या दूसरे दिन, चकत्ते लाल त्वचा जैसे दिख सकते हैं। बीमारी के बाद के दिनों में (चौथे से सातवें दिन पर) चकत्ते चेचक जैसे लग सकते हैं। छोटे लाल दाग (पटीकिया) त्वचा पर उभर सकते हैं। व्यक्ति को श्लेष्म झिल्ली द्वारा मुंह तथा नाक से हल्का रक्तस्राव हो सकता है। बुख़ार अपने आप कम (बेहतर) होने लगता है तथा एक या दो दिनों के लिये वापस होने लगता है। डेंगू से पीड़ित 5% से कम व्यक्तियों को परिसंचरण आघात, डेंगू आघात सिन्ड्रोम तथा डेंगू रक्तस्रावी बुख़ार होता है।
कारण –
डेंगू बुखार डेंगू वायरस के कारण होता है। यह वाइरस चार तरह-डेनवी1,डेनवी 2, डेनवी 3 और डेनवी 4 का होता है। डेंगू वायरस “फ्लाविविरिडे” परिवार तथा “फ्लाविविरस” जीन का हिस्सा है। अन्य वायरस भी इस परिवार से संबंधित हैं तथा मानवों में बीमारियां पैदा कर सकते हैं। उदाहरण के लिये, पीत-ज्वर वायरस, वेस्ट नाइल वायरस, सेंट लुईस एन्सेफलाइटिस वायरस, जापानी एन्सेफलाइटिस वायरस, टिक- जनित एन्सेफलाइटिस वायरस, क्यासानूर जंगल रोग वायरस तथा ओमस्क रक्तस्रावी बुख़ार, सभी “फ्लाविविरिडे” परिवार से संबंधित हैं।. इनमें से अधिकतर वायरस मच्छरों या टिक द्वारा फैलते हैं। डेंगू वायरस, अधिकतर एडीज़ मच्छरों द्वारा संचरित (या फैलता) होता है, विशेष रूप से एडीज़ आएजेप्टी प्रकार के मच्छर से।
प्रक्रिया –
जब मच्छर किसी व्यक्ति को काटता है तो इसकी लार मानव की त्वचा में प्रवेश कर जाती है। यदि मच्छर को डेंगू है तो वायरस इसकी लार में होता है। इसलिये जब मच्छर किसी व्यक्ति को काटता है तो वायरस मच्छर की लार के साथ व्यक्ति की त्वचा में प्रविष्ट हो जाता है। वायरस व्यक्ति की श्वेत रक्त कणिकाओं से जुड़ कर उनमें प्रवेश कर जाता है (श्वेत रक्त कणिकाओं को संक्रमण जैसे खतरों से निपटने के लिये सहायता करने का काम करना होता है।)। जब श्वेत रक्त कणिकाएं शरीर में इधर-उधर जाती हैं तो वायरस पुर्नउत्पादन (अपने प्रतिरूप पैदा करता है) करता है। श्वेत रक्त कणिकाएं कई तरह के संकेतों प्रोटीन (तथाकथित माइटोकाइन) के माध्यम से प्रतिक्रिया करती हैं जैसे इंटरल्यूकिन्स, इंटरफेरॉन तथा ट्यूमर परिगलन कारक। इन प्रोटीन के कारण डेंगू के साथ बुखार, फ्लू जैसे लक्षण तथा गंभीर दर्द पैदा होते हैं।
यदि किसी व्यक्ति को गंभीर संक्रमण हैं तो वायरस उसके शरीर में और अधिक तेजी से बढ़ता है। क्योंकि वायरस की संख्या बहुत अधिक है इसलिये ये कई और अंगों (जैसे जिगर तथा अस्थि मज्जा) को प्रभावित कर सकता है। छोटी रक्त केशिकाओं की दीवारों से रक्त रिस करके शरीर के कोटरों में चला जाता है। इस कारण से रक्त केशिकाओं में कम रक्त का प्रवाह (या शरीर में कम रक्त का प्रवाह होता है) होता है। व्यक्ति का रक्तचाप इतना कम हो जाता है कि हृदय महत्वपूर्ण अंगों को पर्याप्त रक्त की आपूर्ति नहीं कर पाता है। साथ ही, अस्थि मज्जा पर्याप्त प्लेटलेट्स का निर्माण नहीं कर पाती है, जो रक्त का थक्का बनाने के लिये जरूरी है। पर्याप्त प्लेटलेट्स के बिना, व्यक्ति को रक्तस्राव होने की समस्या होने की काफी संभावना है। रक्तस्राव, डेंगू के कारण पैदा होने वाली मुख्य जटिलता (किसी भी बीमारी से होने वाली सबसे गंभीर समस्याओं में से एक) है।
WHO की पुरानी पद्धति में डेंगू रक्तस्रावी बुखार को चार चरणों में विभक्त किया गया था, जिनको ग्रेड I–IV कहा जाता था: (“Dengue shock syndrome”)
- ग्रेड I में व्यक्ति को बुखार होता है, उसे आसानी से घाव होते हैं तथा उसका टूर्निकेट परीक्षण सकारात्मक होता है।
- ग्रेड II में व्यक्ति को त्वचा तथा शरीर के अन्य भागों में रक्तस्राव होता है।
- ग्रेड III में व्यक्ति परिसंचरण झटके (शॉक) दर्शाता है।
- ग्रेड IV में व्यक्ति के परिसंचरण झटके इतने गंभीर होते हैं कि उसका रक्तचाप तथा हृदय दर महसूस नहीं की जा सकती है।रोकथाम –
WHO ने डेंगू के रोकथाम के लिये एक कार्यक्रम (“एकीकृत वेक्टर नियंत्रण”) का सुझाव दिया है जिसमें 5 भिन्न भाग शामिल हैं:
- हिमायत करना, सामाजिक लामबंदी, तथाविधान (कानूनों) का उपयोग करके सार्वजनिक स्वास्थ्य संगठनों तथा समुदायों को और मजबूत बनाना।
- समाज के सभी हिस्सों को एक साथ काम करना चाहिये। जिसमेंसार्वजनिक क्षेत्र (जैसे सरकार), निजी क्षेत्र (जैसे व्यवसाय तथा निगम) और स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र शामिल हैं।
- रोग को नियंत्रित करने के सभी तरीके एकीकृत किये जाने चाहिये (या एक साथ लाये जाने चाहिये), जिससे कि उपलब्धसंसाधनोंका सर्वश्रेष्ठ प्रभावकारी उपयोग किया जा सके।
- निर्णयों को साक्ष्य के आधार पर लिया जाना चाहिये। यह इस बात को सुनिश्चित करेगा कि डेंगू को संबोधित करने वाले हस्तक्षेप सहायक हों।
- वे क्षेत्र जहां पर डेंगू एक समस्या है, सहायता पहुंचायी जानी चाहिये जिससे कि वे अपने आप रोग पर प्रतिक्रिया देने की क्षमताओं का स्वयं निर्माण कर सकें।
घरेलू प्रबंधन –
- पपीते की पत्तियों को डेंगू के बुखार के लिए सबसे असरकारी दवा कही जाती है। पपीते की पत्तियों में मौजूद पपेन नामक एंजाइम शरीर की पाचन शक्ति को ठीक करता है, साथ ही शरीर में प्रोटीन को घोलने का काम करता है। इसके अलावा इस जूस से प्लेटलेट्स की मात्रा तेजी से बढ़ती है। डेंगू के उपचार के लिए पपीते की पत्तियों का ताजा जूस निकाल कर एक-एक चम्मच करके रोगी को दें। पपीते का पेड़ आसानी से मिल जाता है।
- बकरी का दूध बहुत से लोगों को भले ही पसंद न हो लेकिन इसके फायदे बहुत हैं। डेंगू बुखार के लिए बकरी का दूध एक और बहुत ही प्रभावशाली दवा है। बकरी के दूध में गिरते हुए प्लेटलेट्स को तुरंत बढ़ाने की क्षमता होती है। डेंगू के उपचार के लिए रोगी को बकरी का कच्चा दूध थोड़ा-थोड़ा करके पिलाएं, इससे प्लेटलेट्स बढ़ने के साथ-साथ जोड़ों के दर्द में भी आराम मिलेगा।
- गिलोय की बेल का सत्व मरीज को दिन में 2-3 बार दें, या गिलोय के 7-8 पत्तों को लेकर कुचल लें उसमें 4-5 तुलसी की पत्तियां लेकर एक गिलास पानी में मिला कर उबालकर काढा बना लीजिए और इसमें पपीता के 3-4 पत्तों का रस मिला कर लेने दिन में तीन चार लेने से रोगी को प्लेटलेट की मात्रा में तेजी से इजाफा होता है। प्लेटलेट बढ़ाने का इस से बढ़िया कोई इलाज नहीं है। यदि गिलोय की बेल आपको ना मिले तो किसी आयुर्वेदिक स्टोर से आप गिलोय घनवटी लेकर एक एक गोली रोगी को दिन में 3 बार दे सकते हैं।
- डेंगू बुखार में रक्त की कमी को पूरा करने और प्लेटलेट्स के स्तर को बढ़ाने के लिए अनार का रस पीना चाहिए। अनार में मुख्य रूप से विटामिन ए, सी, ई, फोलिक एसिड और एंटी ऑक्सीडेंट पाये जाते हैं। जो रोगी को रोग से लड़ने की क्षमता भी प्रदान करता है। डेंगू में रोगी को नियमित रूप से ताजा अनार का जूस देना चाहिए।
- मेथी के पत्ते भी डेंगू के बुखार को ठीक करने में मददगार होते हैं। मेथी से शरीर के विषाक्त पदार्थ बाहर निकल जाते हैं जिससे डेंगू के वायरस भी खत्म होते हैं। साथ ही यह पीड़ित का दर्द दूर कर उसे आसानी से नींद में मदद करती हैं। मेथी के पत्तों को पानी में उबालकर हर्बल चाय के रूप में इसका प्रयोग किया जा सकता है। इसके अलावा, मेथी पाउडर को भी पानी में मिलाकर पी सकते हैं।
- 10 से 12 तुलसी के पत्ते और 4-5 काली मिर्च को गर्म पानी में उबालकर छानकर, डेंगू के मरीज को पिलाना सेहत के लिए अच्छा रहता है। तुलसी की यह चाय डेंगू रोगी को बेहद आराम पहुंचाती है। यह चाय दिनभर में तीन से चार बार ली जा सकती है। यह चाय आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाती है और एंटी-बैक्टीरियल तत्व के रूप में कार्य करती है।
डेंगू का होम्योपैथिक इलाज –
- युपैटोरियमपरफोलिएटम – पसीने से सिर दर्द छोड़कर सभी लक्षणों में कमी, 7 से 9 बजे सुबह को सर्दी, पहले प्यास और हड्डियों में टीस, सर्दीया गरम अवस्था के बाद मिचली, कै, थरथराहट, सिरदर्द, अतिअधिक प्यास लगने के कारण कम्प आना।
- फेरमफॉस्फोरिकम – रोज एक बजे तीसरे पहर सर्दी, सभी जुकामों और प्रदाह में ज्वर के पहला चरण में यह औषधि कारगर है।
- जेल्सेमियमसेम्पविरेन्स – इतना कांपना कि किसी से पकड़ाए रखना चाहे, नाड़ी धीमी, भरी, मुलायम दबने वाली, पीठ के ऊपर-नीचे सर्दी, गरम और पसीने की अवस्था, दीर्घ कालीन और थकाने वाली, शीत ही नजडै़या, बहुत पेशिक चोटीलापन, अधिक शिथिलता और तीव्र सिर दर्द, स्नायविक शीत, पित्त संबंधी स्वल्प-विराम ज्वर, गशी, चक्कर, अचेतनता, बिना प्यास पतनावस्था, शीत बिना प्यास रीढ़ भर में लहर की तरह त्रिकास्थि से सिर की जड़ तक ऊपर चढ़े, तब यह दवा कारगर है।
- पल्सेटिला निगरिकैन्स – तेज बुखार होने पर भी प्यास नहींलगती है, ज्वर, गशी, चक्कर, अचेतनता, बिना प्यास पतनावस्था में यह दवा कारगर है।
- टिनोस्पोरा कॉर्डिफोलिया – बार-बार ज्वर होकर शरीर दुर्बल हो जाने पर, शुक्रक्षय जनित दुर्बलता में, वात-रक्त व कुष्ट रोग में, सब प्रकार के वात में और स्तन के दूध को शोधने के लिए यह औषधि कारगर है।
- बैलाडोना – उच्चताप रक्तिमा, तथा जलन के लक्षणों में सूजन, आंख दुखना, डेंगू में बुखार के साथ बहुत तेज सिर दर्द हो तो यह औषधि कारगर है।